Tuesday 6 September 2011

My first Hindi Poem - ' कहाँ गई वो लङकी चश्मे वाली?'


कहाँ गई वो लङकी चश्मे वाली?


क्योँ दुनिया लगती है खाली-खाली,
क्योँ रातेँ लगती हैँ इतनी काली,
क्योँ बेरंगँ-सी है सूरज की लाली?
कहाँ गई वो लङकी चश्मे वाली?




दुनिया ने मुझे ये कहाँ धकेला?
क्योँ लगा है मुसीबतोँ का मेला?
क्योँ पङ गया मैँ इतना अकेला?
काश संग होती वो चश्मे वाली!

कहाँ गई मेरे चेहरे की मुस्कान?
क्योँ जल्दी होने लगी है थकान?
क्योँ हिलता सा सपनोँ का मकान?
काश दिल बहला देती चश्मे वाली!

क्योँ हर उम्मीद पर है निराशा का पहरा?
क्योँ मै एक फकीर सा ठहरा?
देख पाता काश मुस्कान तेरी मतवाली
                 ओ प्यारी चश्मे वाली!!                     


बस और दुख नही सह सकता मै,
तेरे बिन अब नहीँ रह सकता मै,
रहा हूं तुझे लेने
जहाँ भी छुपी है तू चश्मे वाली!!!

यारोँ! उसे ढूँढने का उपाए तो सुझाओ!
और मेरा इतना मजाक मत उङाओ!
तय है दंग रह जाओगे
जब देखोगे मेरी चश्मेवाली!!

-Amul Garg