Friday 30 August 2013

गम की बारिश









दुखों का पहाड़ मुझपर टूट पड़ा,
और मैं सुनसान सड़क पर निकल पड़ा,
मंज़िल बिना ही चलने लगा,
अंत की ओर बढ़ने लगा|
मेघ  बरस रहे थे, समाँ खुशहाल था, 
दुख में डूबे मन को इसका कहाँ ख्याल था!
कड़के की सर्दी में भीगता  रहा,
दिशाहीन आगे बढ़ता रहा|
                          
बादल तो बाहर बरस रहे थे, 
असली तूफान तो मन में उमड़ रहा था,
इस गम की बारिश में भीगता रहा,
दिशाहीन आगे बढ़ता रहा|
ठंडी तो बाहर पड़ रही थी,
पर सर्द तो भीतर का ख़ालीपन था,
उसी ख़ालीपन में ठिठुरता रहा,
दिशाहीन आगे बढ़ता रहा|
- अमूल गर्ग