चाँद की ओर देखने लगा हूँ ,
उससे उम्मीदें बांधने लगा हूँ ,
अकेला खड़ा चाँद कि चांदनी में
उससे सुख दुःख बाँटने लगा हूँ|
चाँद से बोलने वाले,
पागल लगते थे मुझको |
जीवन कि सच्चाई से भागने वाले वो लोग
कामचोर लगते थे मुझको!
पर अब समझा हूँ मैं ,
क्या सुख है चांदनी रात के सूनेपन में .
क्या मधुर राग छिपे हैं
चमकते चाँद की चुप्पी में!
उससे उम्मीदें बांधने लगा हूँ ,
अकेला खड़ा चाँद कि चांदनी में
उससे सुख दुःख बाँटने लगा हूँ|
चाँद से बोलने वाले,
पागल लगते थे मुझको |
जीवन कि सच्चाई से भागने वाले वो लोग
कामचोर लगते थे मुझको!
पर अब समझा हूँ मैं ,
क्या सुख है चांदनी रात के सूनेपन में .
क्या मधुर राग छिपे हैं
चमकते चाँद की चुप्पी में!
-अमूल गर्ग