Friday 21 February 2014

चाँद और मैं

चाँद की ओर देखने लगा हूँ ,
उससे उम्मीदें बांधने लगा हूँ ,
अकेला खड़ा चाँद कि चांदनी में 
उससे सुख दुःख बाँटने लगा हूँ|

चाँद से बोलने वाले,
पागल  लगते  थे  मुझको |
जीवन कि सच्चाई से भागने वाले वो  लोग 
कामचोर लगते थे मुझको!

पर अब समझा हूँ मैं ,
क्या सुख है चांदनी रात के सूनेपन में .
क्या मधुर राग छिपे हैं 
चमकते चाँद की चुप्पी में!

-अमूल गर्ग